तेरे बग़ैर जीने का यारा नहीं रहा लेकिन करें भी क्या कोई चारा नहीं रहा साँसें भी तेरी होने लगीं दिल के साथ साथ अब ज़िंदगी पे अपना इजारा नहीं रहा औरों पे इख़्तियार जताने से फ़ाएदा जब ख़ुद पे इख़्तियार हमारा नहीं रहा ऐश-ओ-निशात की कोई तौक़ीर ही नहीं जब ज़िंदगी में ग़म का शरारा नहीं रहा ‘मक़बूल’ मुझ को अपनी ख़ुदी पर है फ़ख़्र-ओ-नाज़ क्या ग़म अगरचे कोई सहारा नहीं रहा