उम्मीद हम से न रखना फ़रेब खाने की कि हम ने देखी हैं नैरंगियाँ ज़माने की वफ़ा का रास्ता है आज किस क़दर सुनसान अब आरज़ू है किसे नक़्द-ए-जाँ लुटाने की मिरी हयात पे ये कैसे पहरे हैं या-रब न रो सकूँ न इजाज़त है मुस्कुराने की उजड़ गया तो किसी तौर फिर ये बस न सका हज़ार कोशिशें कीं शहर-ए-दिल बसाने की ये शेर-गोई का सदक़ा नहीं तो फिर क्या है नज़र में हो गए 'मक़बूल' हम ज़माने की