तिरे चराग़ से रौशन हुए सभी के चराग़ हमारे काम न आए तिरी गली के चराग़ अंधेरा बाँटना फ़ितरत है दुनिया वालों की उजाला दे नहीं सकते हैं दुश्मनी के चराग़ ग़म-ए-हयात के ज़ोर-ओ-सितम से तंग आ कर बुझा के रख दिए मैं ने भी बेबसी के चराग़ तमाम उम्र उजाला न हो सका हासिल तमाम लोग जलाते रहे ख़ुदी के चराग़ हर एक सम्त मुख़ालिफ़ हवाएँ हैं 'ख़ालिद' जलें तो कैसे जलें मेरी ज़िंदगी के चराग़