तिरे एहसास में जलता दिया हूँ अगर तू अक्स है मैं आइना हूँ सराब-ए-दश्त की सूरत नहीं मैं बसीरत का उभरता दायरा हूँ रही है गुम्बद-ए-जाँ में सदा जो उसी आवाज़ से लिपटा हुआ हूँ रिफ़ाक़त का गुहर है ऐसा रौशन मैं ख़ुद अपनी नज़र से मावरा हूँ कोई आवाज़ लहराती है 'तालिब' मैं अपने आप से जब बोलता हूँ