किस जगह छोड़ा था वो तीर-ओ-कमाँ याद नहीं था कहीं साहिल-ए-दरिया पे मकाँ याद नहीं जाने किस सम्त से जागे थे वो शो'ले घर में जाने किस सम्त से निकला था धुआँ याद नहीं महके ख़ुशबू से तिरी कितने दरीचे दिल के किस ने दी फिर मिरे लफ़्ज़ों को ज़बाँ याद नहीं ढूँड कर लाए कोई अब वो ख़लिश पहली सी खो गए थे तिरी आँखों में कहाँ याद नहीं वक़्त की गोद भी आसेब-ज़दा लगती थी अम्न की हम को कोई भी तो अज़ाँ याद नहीं इस क़दर होश है कि सामने चेहरा था वही गुम हुए फिर इसी वहशत में कहाँ याद नहीं चारों जानिब है वही दर्द का सहरा 'तालिब' हम फ़क़ीरों को कोई काहकशाँ याद नहीं