तेरे हर जौर पे याँ शुक्र-ए-ख़ुदा है ऐ दोस्त कि यही मसलक-ए-अर्बाब-ए-वफ़ा है ऐ दोस्त हम को इस अहद-ए-वफ़ा से थीं उमीदें कितनी तुझ को जो अहद-ए-वफ़ा भूल चुका है ऐ दोस्त तेरी जानिब से न लाई कोई पैग़ाम कभी मेरी फ़रियाद भी सहरा की सदा है ऐ दोस्त तेरे आने की दोबारा जो कोई आस नहीं कितनी सुनसान मिरे दिल की फ़ज़ा है ऐ दोस्त तेरी यादों से भी तस्कीन-ए-तमन्ना न हुई वक़्त हम पर कभी ऐसा भी पड़ा है ऐ दोस्त क्या अजब है कि तिरी रंजिश-ए-बेजा के सबब तेरे 'शफ़क़त' को सर-ए-तर्क-ए-वफ़ा है ऐ दोस्त