तिरे इश्क़ ने दिया है वो मक़ाम-ए-ख़ुसरवाना है जहाँ जुनूँ हक़ीक़त है जहाँ ख़िरद फ़साना ये हनूज़ कह रहा है सर-ए-राह इक दिवाना कोई जा के उन से कह दे मिरी अर्ज़-ए-ख़ादिमाना वो रफ़ू नज़र से करना मिरी चाक-दामनी को तिरी आँख को मिला है ये हुनर रफ़ू-गराना ये फ़लक के चाँद तारे हैं बुझे बुझे से सारे मैं सुना रहा हूँ इन को शब-ए-हिज्र का फ़साना ये जबीं मचल रही है कि तड़प रहे हैं सज्दे मुझे कर रही है काफ़िर तिरी चश्म-ए-क़ातिलाना