तिरे ख़याल के आईने में उतर रहे हैं तुझे ख़बर है नया रंग तुझ में भर रहे हैं सिमट रहे हैं कभी अपने होश के अंदर गुबार-ए-वहम की सूरत कभी बिखर रहे हैं ये हाल है कि नहीं कुछ भी है ख़बर अपनी मगर ये ज़ो'म कि तज़ईन-ए-ज़ात कर रहे हैं न जल के राख हुए हैं न आग भड़की है न पूछ कैसे मराहिल से हम गुज़र रहे हैं खुले हैं राज़-ए-निहाँ रात दिल पे कुछ ऐसे कि बोलने में भी अब एहतियात कर रहे हैं हवा में ज़हर की यूँ हो गई है आमेज़िश कि साँस लेते हुए भी हवा में डर रहे हैं ग़लत कि तुझ को ख़यालों में बाँध रक्खा है ये बात सच है कि हम तुझ से बे-ख़बर रहे हैं ये इंतिज़ार अभी ख़त्म होने वाला नहीं ख़बर किसी ने ये दी है कि वो सँवर रहे हैं क़ुबूल अपनी दुआ भी नहीं हुई 'यावर' यही नहीं मिरे नाले भी बे-असर रहे हैं