तेरे लहजे में बेबाकी बहुत है मगर फ़ितरत में चालाकी बहुत है यहाँ पाकीज़गी की बात मत कर यहाँ ज़ेहनों में नापाकी बहुत है तबस्सुम तो लबों पर है तुम्हारे मगर आँखों में नमनाकी बहुत है अनासिर तो कई हैं इस में लेकिन हमारा जिस्म ये ख़ाकी बहुत है मसीहा कहते हैं 'महताब' जिस को सुना है उस में सफ़्फ़ाकी बहुत है