तेरे मिलने का आख़िरी इम्कान जैसे मुझ में है एक नख़लिस्तान घर में लगता नहीं है जी मेरा दश्त में रह गया मिरा सामान रेत में सीपियाँ मिली हैं मुझे क्या समुंदर था पहले रेगिस्तान लौटे शायद इसी बहाने वो रख लिया मैं ने उस का कुछ सामान तू तिरे इर्द-गिर्द ही है कहीं हर तरफ़ ढूँढ हर जगह को छान दूर तक कोई भी नहीं दिल में आख़िरी शहर भी मिला वीरान किस ने फूंकी है जिस्म में साँसें किस ने छेड़ी है ज़िंदगी की तान ख़ाक हो जाएगा बदन 'आतिश' होंगे इक दिन धुआँ ये जिस्म ओ जान