तिरे शिकवों से जौर-ए-आसमाँ तक बात आ पहुँची कहाँ से इब्तिदा की थी कहाँ तक बात आ पहुँची मोहब्बत में हमारे इम्तिहाँ तक बात आ पहुँची जहाँ रुकने लगे दम भी वहाँ तक बात आ पहुँची चमन में आग लगने का भी सदमा कम न था मुझ को तड़प ऐ दिल कि अब तो आशियाँ तक बात आ पहुँची हुआ आग़ाज़ क़तरे से मगर ये बहस बिल-आख़िर बढ़ी इतनी कि बहर-ए-बे-कराँ तक बात आ पहुँची ख़ुदा जाने मिरी तौबा का अब अंजाम क्या होगा जनाब-ए-शैख़ से पीर-ए-मुग़ाँ तक बात आ पहुँची कुजा वो दिन कि गंज-ए-बे-बहा समझा मोहब्बत को कुजा ये दिन कि जिंस-ए-राएगाँ तक बात आ पहुँची यक़ीं था हम को राज़ इफ़्शा अदू ही ने किया होगा बहुत नादिम हुए जब राज़-दाँ तक बात आ पहुँची न मैं अब दिल की सुनता हूँ न दिल अब मेरी सुनता है तुम्हारी मेहरबानी से यहाँ तक बात आ पहुँची नहीं भी मुँह से कहना जिन को 'साहिर' बार होता है ग़ज़ब होगा कभी जो उन की हाँ तक बात आ पहुँची