तेरे तसव्वुरात से बचना है अब मुहाल भी कुछ तो है तेरी फ़िक्र भी कुछ है तिरा ख़याल भी ऐ दोस्त आ के देख ले इश्क़ का ये कमाल भी तू ही मिरा जवाब है तू ही मिरा सवाल भी आई तुम्हारी याद जब ढल गई लम्हों में सदी ऐसा लगा कि रुक गई गर्दिश-ए-माह-ओ-साल भी दूरी के बावजूद भी टकरा रही है साँस अब ऐसी जुदाई पर करूँ क़ुर्बान सद-विसाल भी कोई ज़माने में नहीं जिस पे हो तेरा अक्स भी किस से मिसाल दूँ तिरी मिलती नहीं मिसाल भी नाज़ कभी न कीजिए अपने उरूज-ए-हाल पर ब'अद-ए-कमाल ऐ 'ज़िया' आता है इक ज़वाल भी