तुम्हें पसंद है तन्हा सफ़र ज़ियादा-तर यही रहा मिरे पेश-ए-नज़र ज़ियादा-तर गुमाँ कि लौट के आ जाएँगे किसी साअ'त उसी गुमाँ ने उजाड़े हैं घर ज़ियादा-तर गुरेज़ के कोई लम्हे भी आ गए होंगे तुम्हारी याद रही हम-सफ़र ज़ियादा-तर दिखाई देती हैं कब ख़ुद को ख़ामियाँ अपनी फ़रेब खाती है अपनी नज़र ज़ियादा-तर कहाँ मक़ाम वो होता है सर झुकाने का वो जिस मक़ाम पे झुकते हैं सर ज़ियादा-तर ये ए'तिबार की दुनिया भी ख़ूब दुनिया है कि मो'तबर भी है ना-मो'तबर ज़ियादा-तर 'नईम' काम किए कम ही काम के हम ने अबस गुज़ारे हैं शाम-ओ-सहर ज़ियादा-तर