तेरे उश्शाक़ ने हर मोड़ पे ठुकराई है अक़्ल वो भीक है जो दुनिया उठा लाई है फूट जाएँ मिरी आँखें यही दिन देखने थे तेरी तस्वीर किसी ग़ैर ने दिखलाई है कितनी मिल जाए किसे कुछ भी नहीं कह सकते हस्ब-ए-तौफ़ीक़ तिरे इश्क़ में रुस्वाई है ऐसी हालत तो सर-ए-हश्र नज़र आनी थी जो तिरे साया-ए-दीवार नज़र आई है हम से भी फेर नज़र हम को भी रुस्वा फ़रमा हम ने नुक़सान उठाने की क़सम खाई है अब तिरे ख़्वाब फ़लक से भी उतर आएँ तो क्या आस की छत से मिरी नींद उतर आई है इब्न-ए-'जावेद' ने बस ग़म नहीं पाया है तिरा इब्न-ए-'जावेद' ने हिस्से की ख़ुशी पाई है