तिरे करम के सहारे कशीद करता था मैं कश्तियों को किनारे कशीद करता था दुआ-ब-दस्त यतीमों की लाज रखने को वो आसमान से तारे कशीद करता था बिल-आख़िरश वो मुझे ख़ुल्द में नज़र आया मैं नक़्श-ए-पा के नज़ारे कशीद करता था शिकस्ता-पा था मगर प्यास थी सो अपनी सम्त मैं आबशार के धारे कशीद करता था मुझे दुआ-ए-शिफ़ा याद थी सो मेरा दिल जो दिल थे दर्द के मारे कशीद करता था मुसव्विरान मी ख़्वाहन्द बै'अत-ए-यद-ए-मन तिरे नुक़ूश मैं सारे कशीद करता था अजीब सहरा था करता था आबले ईजाद फिर उन पे पाँव हमारे कशीद करता था