तीर-ए-नज़र ने आप की घाएल किया मुझे फिर शौक़-ए-इंतिज़ार ने पागल किया मुझे ऐसी चली हवा-ए-गुलिस्ताँ मिरी तरफ़ छू कर बू-ए-गुलाब ने संदल किया मुझे बेटों ने मेरे नाम की दस्तार पहन ली और बेटियों ने सूरत-ए-आँचल किया मुझे बढ़ने लगी है दिल की तमन्ना-ए-आशिक़ी यूँ आ के तेरी याद ने बेकल किया मुझे होश-ओ-हवास खोने लगा हूँ फ़िराक़ में तन्हाइयों ने ऐसा मुक़फ़्फ़ल किया मुझे पहले तो आज़माया अता-ए-बहिश्त से फिर भेज कर जहान में अफ़ज़ल किया मुझे हर शख़्स मो'तरिफ़ कि मुहिब्ब-ए-वतन हूँ मैं फिर अदलिया ने क्यूँ सर-ए-मक़्तल किया मुझे इब्न-ए-चमन है तेरी वफ़ाओं पे जाँ-निसार अपना बना के तू ने मुकम्मल किया मुझे