तीरगी में भी रौशनी होती दिल को हासिल अगर ख़ुशी होती इक नज़र मुझ को देख लेते तो दर्द में कुछ न कुछ कमी होती आप जल्वा अगर न दिखलाते मेरे घर में भी तीरगी होती दोस्तों की तरफ़ से थी उम्मीद काश उन से भी दुश्मनी होती मेरा अरमान पूरा हो जाता बात उन से अगर कभी होती राह-ए-ग़म मंज़िल-ए-मोहब्बत में उन की सूरत भी अजनबी होती 'शाद' वो चाहते तो मुमकिन था अपने घर में भी रौशनी होती