जो ख़ुशी का पयाम लाई है वो हमारी शिकस्ता-पाई है फिर नशेमन की ख़ैर हो यारब फिर चमन में बहार आई है मुस्कुराती कली गुलिस्ताँ में बिजलियाँ अपने साथ लाई है नाख़ुदा ने उसे सँभाला है मेरी कश्ती जो डगमगाई है चाँद तारों ने मुस्कुराते हुए दास्तान-ए-अलम सुनाई है फिर तड़पता है दिल शब-ए-फ़ुर्क़त याद-ए-जानाँ तिरी दुहाई है 'शाद' से पूछते हैं अहल-ए-सुख़न इतनी शोहरत कहाँ से पाई है