तिरी आरज़ू तिरी जुस्तुजू मुझे रात दिन यही काम है मिरे दिल में तेरी ही याद है मिरे लब पे तेरा ही नाम है मैं भटक रहा हूँ इधर उधर कभी इस नगर कभी उस नगर मुझे धड़कनों से पता चला मिरे दिल में तेरा मक़ाम है तुम्हें क्या बताऊँ अता-पता मिरा गर्दिशों से है वास्ता कि मैं एक ख़ाना-ख़राब हूँ कहीं सुब्ह है कहीं शाम है जो नहीं है वक़्त का हम-सफ़र उसे सुब्ह-ओ-शाम की क्या ख़बर हो किसी का वक़्त पे क्या असर भला वक़्त किस का ग़ुलाम है हुए क्या तुम्हारे वो क़हक़हे वो गले लगाना तपाक से वो खिंचे खिंचे से हो आज क्यों न सलाम है न पयाम है कोई तुझ को पहुँचेगा क्या भला कोई तेरा हीता करेगा क्या जो गुमान-ओ-वहम से दूर है वो मक़ाम तेरा मक़ाम है ये तिलिस्म है नए दौर का कोई इम्तियाज़ करेगा क्या कहाँ 'शाद' सज्दा रवा रखें कहाँ सर झुकाना हराम है