तेरी हर एक बात पे दिल को यक़ीं रहा तू आगे बढ़ गया मैं वहीं का वहीं रहा दिल ऐसा चूर-चूर हुआ तेरे बाद फिर न तो मकाँ रहा न ही कोई मकीं रहा वो एक ज़ख़्म जिस को भरा है तमाम उम्र वो ज़ख़्म इस बदन में कहीं तह-नशीं रहा इक शख़्स पर तमाम थे सारे मुआमलात अफ़्सोस कि सभी रहे इक वो नहीं रहा बेहाल हो गए थे हम उस से बिछड़ने पर लेकिन वो शख़्स वैसे का वैसा हसीं रहा