तिरी इंतिज़ारी में धुंदली हुई है नज़र जो दरीचे पे रक्खी हुई है ये सोचों की खिचड़ी बड़ी बे-सवादी ज़ेहन के पतीले से ख़ुरची हुई है जहालत के मुँह पर तमाचा पड़ा है बड़े ऑपरेशन से बेटी हुई है मुझे क्यों गिला हो किसी बेवफ़ा से जो खाया उसी की तो पल्टी हुई है ज़ियादा हुनर ने बिगाड़ी है सूरत बहुत साफ़ करने से मैली हुई है ग़रीबी छुपा ली है पतलून में यूँ फटी शर्ट अन्दर को घुरसी हुई है मिरी शब अँधेरों में कटती वगर्ना 'क़मर' के तसलसुल से चमकी हुई है