तिरी जफ़ाओं का लुब्ब-ए-लुबाब लिक्खा है जो मेरे चेहरे पे दिल ने हिसाब लिक्खा है न साँस लेने की ताक़त न आने जाने की मिरे नसीब में कैसा अज़ाब लिक्खा है सितम किए थे जो तुम ने वो याद हैं हम को हमारे पास तो सब का हिसाब लिक्खा है उलट के देखो सितम का जवाब किस से मिला मिरी किताब में इस का जवाब लिक्खा है हमारे लिखने पे क्यों ए'तिराज़ है तुम को जहाँ भी लिक्खा है तुम को गुलाब लिक्खा है ग़ज़ल तो एक बहाना है अस्ल में 'अंजुम' किसी सवाल का हम ने जवाब लिक्खा है