तेरी मोहब्बतों के गिरफ़्तार आ गए या'नी अज़िय्यतों के तलबगार आ गए ये जानते हुए कि ख़रीदार ही नहीं हम ख़्वाब बेचने सर-ए-बाज़ार आ गए देखा कि बज़्म-ए-यार में ग़ैरों की भीड़ है चुप-चाप उठ के हम पस-ए-दीवार आ गए इक फूल अपने वक़्त से पहले महक उठा जाने कहाँ कहाँ से ख़रीदार आ गए बस एक बार कूचा-ए-जानाँ का रुख़ किया फिर उस के बाद ख़ुद ही सर-ए-दार आ गए