तेरी नज़र में आलम मेरी नज़र में तू है इक दिल के हाथ में अब इक दिल की आबरू है फ़ितरत का रंग ले कर फिरती जो चार-सू है इक बे-गुनाह दिल की मा'सूम आरज़ू है पज़मुर्दा गुल चमन का कलियों से कह रहा है फूलों की ख़ुश-नुमाई इक राज़-ए-रंग-ओ-बू है जब हद से बढ़ गई कुछ हर हद मिरी ख़ुशी की मैं ने समझ लिया कि अब ख़त्म आरज़ू है होंटों को हो न जुम्बिश वो सब समझ रहे हों ये शान-ए-गुफ़्तुगू भी इक शान-ए-गुफ़्तुगू है मुझ से सुनो जुनूँ और बेचारगी का मतलब फूलों की चाह करना काँटों की आरज़ू है कौन है जो बे-क़रार है तेरे बग़ैर 'अशरफ़' मंज़िल को देख शायद अब तेरी जुस्तुजू है