तेरी नज़रों पे तसद्दुक़ आज अहल-ए-होश हैं जान-ए-जाँ तेरी निगाहें मय-कदा-बर-दोश हैं इश्क़ में अहल-ए-वफ़ा कितने अज़िय्यत-कोश हैं ख़ून दिल का हो रहा है लब मगर ख़ामोश हैं ऐ निगाह-ए-शौक़ किस मंज़िल में ले आई मुझे दोनों आलम जल्वा-गाह-ए-यार में रू-पोश हैं मुझ को तन्हा देखने वाले न समझें राज़-ए-इश्क़ मेरी तन्हाई के लम्हे यार के आग़ोश हैं 'सरमद'-ओ-'मंसूर'-ओ-'शिब्ली' की नज़र से देखिए होश वाले हैं वही दुनिया में जो बेहोश हैं लन-तरानी की सदा पर मुस्कुराया था कोई जितने ज़र्रे तूर में थे आज तक बेहोश हैं ऐ 'फ़ना' बादा-कशी में ये उन्ही का है करम उन की मस्त आँखों से पी कर भी सरापा होश हैं