तो क्या तड़प न थी अब के मिरे पुकारे में वगर्ना वो तो चला आता था इशारे में वो बात उस को बताना बहुत ज़रूरी थी वो बात किस लिए कहता मैं इस्तिआरे में मुदाम हिज्र-कदे में वो याद रौशन है कहाँ है ऐ दिल-ए-नाकाम तू ख़सारे में मिरे अलावा सभी लोग अब ये मानते हैं ग़लत नहीं थी मिरी राय उस के बारे में फ़क़ीर है प करामत किसी ने देखी नहीं गुज़र-बसर ही किया करता है गुज़ारे में