तेरी रूह में सन्नाटा है और मिरी आवाज़ में चुप तू अपने अंदाज़ में चुप है मैं अपने अंदाज़ में चुप गाहे गाहे साँसों की आवाज़ सुनाई देती है गाहे गाहे बज उठती है दिल के शिकस्ता-साज़ में चुप सन्नाटे के ज़हर में बुझते लोगों को ये कौन बताए जितना ऊँचा बोल रहे हैं उतनी है आवाज़ में चुप इक मुद्दत से ख़ुश्क पड़ा है वो झरना अंगड़ाई का जाने किस ने भर दी है उस पैकर-ए-नग़्मा-साज़ में चुप रग रग में जब ख़ून की बूँदें बुलबुल बन कर चहक उठीं फिर दिल-ए-'हाफ़िज़' क्यूँ कर साधे सीने के शीराज़ में चुप