तेरी सूरत से आश्ना हूँ मैं यूँ ही पागल नहीं हुआ हूँ मैं दम-ब-दम मुझ को आज़माते हो एक दुनिया में क्या बचा हूँ मैं अजनबी है वो ख़ूब-रू लेकिन लग रहा है कि जानता हूँ मैं नाग डसता तो मर न जाता मैं हाए इस ज़ुल्फ़ का डसा हूँ मैं तेरी दुनिया में क्यों रहूँ अब जब तेरी महफ़िल से उठ चुका हूँ मैं छाछ ख़ुशियों की पी नहीं सकता इश्क़ के दूध का जला हूँ मैं मेरी फ़रियाद सुन नहीं सकते और दा'वा है कि ख़ुदा हूँ मैं तेरी दहलीज़ पर क़दम रोके जाने किस सोच में खड़ा हूँ मैं दिल से नज़दीक यार से 'शाहिद' दूर हो कर भी कब जुदा हूँ मैं