तेरी तख़्लीक़ तिरा रंग हवाला था मिरा कौन कहता है कि अंदाज़ निराला था मिरा मैं जहाँ पर था वहीं तू था मिरे आईना-गर तेरी तस्वीरों से भरपूर रिसाला था मिरा चाहता था मैं दुआ माँगता पर क्या करता मेरे हाथों में तो लबरेज़ पियाला था मिरा मुझे पहले कई सदियों की सज़ा काटना थी मंज़िल-ए-सुब्ह से कुछ दूर उजाला था मिरा मैं उसे भूल गया ताकि उसे याद न आऊँ कितना महबूब मुझे भूलने वाला था मिरा हूँ तही-दस्त मगर मिन्नत-ए-कश्कोल नहीं मोहर-ए-तस्कीन मुझे हाथ का छाला था मिरा ज़हर पीते हुए ख़ामोश ही रहना था मुझे शाख़-ए-तस्लीम से गुल-पोश पियाला था मिरा दूसरी ज़िंदगी देने की ज़रूरत ही न थी हर नई शक्ल की सूरत में इज़ाला था मिरा ये जो दुनिया में सर-ए-मौज-ए-हवा लिक्खा है मेरे यारों ने कभी नाम उछाला था मिरा