तेरी तस्वीर को धुँदला नहीं होने देंगे ज़िंदगी हम तुझे रुस्वा नहीं होने देंगे सर पे हर लम्हा रहेंगे तिरे आँचल की तरह तू ग़ज़ल है तुझे तन्हा नहीं होने देंगे जिन मकानों से है मंसूब ख़ुदा की अज़्मत उन मकानों में अँधेरा नहीं होने देंगे जान जाती है चली जाए बला से लेकिन हम मोहब्बत को तमाशा नहीं होने देंगे जिन को साए में गुनाहों को पनाहें मिल जाएँ उन फ़सीलों को अब ऊँचा नहीं होने देंगे पार कर ले जो क़नाअत की हदों को 'गौहर' इतना दामन को कुशादा नहीं होने देंगे