तेरी उल्फ़त शोबदा-पर्वाज़ है आरज़ू गर है तमन्ना-साज़ है फिर हदीस-ए-इश्क़ का आग़ाज़ है आज फिर गोया ज़बान-ए-राज़ है गंज-ए-असरार-ए-अज़ल है बाग़-ए-दहर पत्ता पत्ता दफ़्तर-ए-सद-राज़ है जान दे दी उन पे और ज़िंदा रहे अपने मरने का नया अंदाज़ है होशियार ऐ नावक-अफ़गन होश्यार ताइर-ए-जाँ माइल-ए-परवाज़ है रुख़्सत ऐ अक़्ल-ओ-ख़िरद होश-ओ-हवास शौक़-ए-वस्ल-ए-यार का आग़ाज़ है मेरे नाले सुन के फ़रमाते हैं वो ये उसी की दुख-भरी आवाज़ है जिस को सब समझे हैं दश्त-ए-कर्बला वो तो मैदान-ए-नियाज़-ओ-नाज़ है ज़र्रे ज़र्रे में अयाँ होने के ब'अद आज तक राज़-ए-हक़ीक़त राज़ है आप जाँचें मजमा-ए-उश्शाक़ में उन में 'बेदम' सा कोई जाँ-बाज़ है