तेरी यादों ने कभी चैन से जीने न दिया मैं ने चाहा तो मुझे ज़हर भी पीने न दिया यूँ ही बन बन के बिगड़ते रहे आईन-ए-वफ़ा बे-सहारों को सहारा तो किसी ने न दिया ग़म तो ग़म जोश-ए-मसर्रत ने बढ़ाया वो जुनूँ चाक-ए-दामाँ किसी उनवान भी सीने न दिया ज़िंदगी ग़म से सँवरती है ये माना लेकिन मंज़िल-ए-ग़म में सहारा तो किसी ने न दिया आज क्यूँ आ गए तुम दर्द का दरमाँ बन कर जाम-ए-फ़ुर्क़त भी मुझे चैन से पीने न दिया तेरे मिलने की ख़ुशी तेरे बिछड़ने का मलाल ग़मज़ा-ए-शाम-ओ-सहर ने हमें जीने न दिया किस से शिकवा करें वीरानी-ए-हस्ती का 'हयात' हम ने ख़ुद अपनी तमन्नाओं को जीने न दिया