तेरी ज़ुल्फ़ में दिल फँसा चाहता है ये आबाद घर अब लुटा चाहता है मिरा दिल अब उन का हुआ चाहता है ये अपना पराया हुआ चाहता है अयादत को आता है रश्क-ए-मसीहा ये बीमार अच्छा हुआ चाहता है न ले जा मुझे उस के कूचे में ऐ दिल तू नाहक़ को रुस्वा हुआ चाहता है जो छेड़ा 'हक़ीर' उन को मैं ने तो बोले तुम्हें अब तो सौदा हुआ चाहता है