था ख़फ़ा मुझ से बद-गुमान भी था और वही मुझ पे मेहरबान भी था जब सितारों की ज़द में आई मैं तब लगा सर पे आसमान भी था फूल कितने खिले थे दिल में मगर इक वहीं ज़ख़्म का निशान भी था किस से करती मैं धूप का शिकवा मेरा सूरज ही साएबान भी था ज़ब्त-ए-एहसास हम भी कर लेंगे इस यक़ीं पर 'सबा' गुमान भी था