था मान बहुत जिस पे जुदाई नहीं देता अब ढूँड रहा हूँ तो दिखाई नहीं देता तू क़द में बड़ा है सो मुझे चीख़ना होगा कहते हैं बुलंदी पे सुनाई नहीं देता पर काट के वो बाब-ए-क़फ़स खोल रहा है ऐसा भी नहीं है कि रिहाई नहीं देता रौशन है वो इतना कि उसे दूर से देखो नज़दीक से वो शख़्स दिखाई नहीं देता अंधा है जिसे साँस दिखाई नहीं देती बहरा है जिसे ज़ख़्म सुनाई नहीं देता वो शख़्स न बोले तो मुझे लगता है ऐसे जैसे कोई बरसों की कमाई नहीं देता