था वो जंगल कि नगर याद नहीं क्या थी वो राहगुज़र याद नहीं ये ख़याल आता है मैं ख़ुश था बहुत किस तरफ़ था मिरा घर याद नहीं क्या थी वो शक्ल पे भोली थी बहुत प्यारा सा नाम था पर याद नहीं ज़ख़्मों के फूल हैं दिल में अब भी किस ने बख़्शे थे मगर याद नहीं इक घनी छाँव में दिन बीता है शब कहाँ की थी बसर याद नहीं एक लम्हा तो धड़कता है ज़रूर कई सदियों का सफ़र याद नहीं ताक़ थे दास्ताँ कहने में 'उबैद' अब ब-जुज़ दीदा-ए-तर याद नहीं