थक कर जब भी बैठ गया हूँ मैं पीपल की छाँव में गौतम आया गौतम आया शोर मचा है गाँव में खोज में उस की शहरों शहरों घूम रहा हूँ सदियों से जिस का नाम लिखा है मेरे हाथों की रेखाओं में मत ले जाओ धूप के उस जंगल में बोझल आँखों को चुभ जाएँगे ख़ार-ए-हक़ीक़त ख़्वाब के कोमल पाँव में अपने मन की आशाओं के फूल पिरोना काम मिरा मा'नी की ख़ुशबू तुम सूँघो शब्दों की मालाओं में सूरज की किरनों की बरछी रूह को ज़ख़्मी करती है आओ यारो लौट चलें हम तंग-ओ-तार गुफाओं में