थकन के साथ बढ़ा हल्क़ा-ए-नज़र मेरा हुआ न ख़त्म किसी मोड़ पर सफ़र मेरा उबूर कर लूँ अभी ज़िंदगी का वीराना खड़ा हुआ है मगर रास्ते में डर मेरा भटक रहा हूँ मैं हालात के अंधेरों में चमक रहा है तिरे आँसुओं से घर मेरा मिला जो क़ुर्ब तो रौशन हुए सभी ख़ाके तरस रहा था उसी आग को हुनर मेरा ख़ुद अपने आप को समझा के लौट आया हूँ कोई भी बस न चला जब हुजूम पर मेरा वो शोर था न सुनी अपने जिस्म की आवाज़ बुला रहा था मुझे कब से हम-सफ़र मेरा मैं घर गया हूँ मकानों के दरमियाँ 'राशिद' पड़ा नहीं अभी साया ज़मीन पर मेरा