तब उस का ज़हर उसी के बदन में भर जाए अगर ज़बाँ न चलाए तो साँप मर जाए खड़ी है दर पे अजल और मुझ में जान नहीं कहो वो देर से आई है अपने घर जाए कोई चराग़ जहाँ रौशनी का ज़िक्र करे सियाह रात का चेहरा वहीं उतर जाए वो बर्ग-ए-ख़ुश्क जिसे शाख़ ने लताड़ दिया हवा के साथ न जाए तो फिर किधर जाए ये जो चराग़ हवाओं की धुन पे रक़्साँ है उसे बताओ अभी वक़्त है सुधर जाए अदब की सोच यही है तुम्हारा तीर नहीं तुम्हारा शेर दिल-ओ-जान में उतर जाए तिरे बयान में ख़ुशबू है रौशनी दिल में 'मयंक' सब की तमन्ना है तू बिखर जाए