थम के बरसो ना यहाँ कच्चे मकानों ने अभी साज़ टप टप के न गाने की क़सम खाई है तू भी आशिक़ है समझता हूँ मैं आँसू तेरे शोख़ चंचल सी हवा खींच तुम्हें लाई है तुम समझते हो ज़ुलेख़ा की मोहब्बत का जुनूँ कैसे ख़ालिक़ को वो आशिक़ की अदा भाई है तुम को मालूम है क्यों मिस्र के बाज़ारों में सेल ये हुस्न की ख़ुद इश्क़ ने लगवाई है तुम गरजते हो बड़े शौक़ से गरजो लेकिन तेरी चीख़ों में मोहब्बत की जग-हँसाई है तुम ने सोचा है बहुत इश्क़ मोहब्बत 'हैदर' बात ये दिल की न अक़्लों में समा पाई है