ठान ली उस ने जब कुछ कर दिखलाने की एक ग़ज़ल तब रच डाली परवाने की तू ने उस को पागल कर के छोड़ दिया देखा कैसी हालत है दीवाने की मुद्दत बाद भी उस के तेवर वैसे थे किस ने कोशिश की थी मुझे मनाने की अपनी ज़ुल्फ़ों में अटका कर दिल मेरा कोशिश उन की है एहसान जताने की दिल तोड़ा है आप ने मेरा इस के बाद सोच रहे हैं मय्यत मेरी उठाने की उन की नज़रों से 'दिलदार' झलकता है तय्यारी है आशिक़ को दफ़नाने की