थी हक़ीक़त कि वो था ख़्वाब उसे जाने दो चाँद निकले थे मुक़ाबिल मिरे सिरहाने दो अक़्ल और दिल हुए यकजा ये तमाशा था अजब एक मक़्सद था नज़र आए थे बेगाने दो एक पर उस का था सर दूसरे पर ग़ैर का था ये तो अच्छा हुआ थे पास मिरे शाने दो पासबाँ हट गए क़िस्मत ने मेरा साथ दिया उस ने जब कह दिया उस को मिरे पास आने दो शौक़ का दाव हर इक ठीक पड़ा दिल की सुनी दिल ने समझाया वो शरमाता है शरमाने दो तुम हो महरूम तो तुम सब्र ही पा जाओ 'सुहैल' जिस ने पाई है मोहब्बत उसे तुम पाने दो