थी जो अनहोनी उसी बात को करते देखा जीते जी दिल को कई मर्तबा मरते देखा वक़्त को रंज में ठहरा हुआ पाया हम ने बर्क़-पा गर उसे राहत में गुज़रते देखा रो के जी हो गया हल्का तो दमक उट्ठा मुँह फूल को ओस की बूंदों से निखरते देखा प्यार ही प्यार में जो ज़ख़्म लगाया था कभी ताज़ा कुछ और उगा जब उसे भरते देखा वो कि ठहराया गया था जिसे वाज़ेह ममनूअ' हम ने हर शख़्स को उस रह से गुज़रते देखा चाँद को चाहा कि वो उस के मुक़ाबिल उतरे चेहरा आईने में उस ने जो सँवरते देखा 'शौकत' इस दहर को जितना भी समेटा हम ने आप को फिर इसी निस्बत से बिखरते देखा