मौज-ए-हवा-ए-शौक़ उसे पाएमाल कर रक्खेंगे ख़ाक-ए-दिल को कहाँ तक सँभाल कर अफ़्सुर्दा-दिल न हो ये सफ़र की तकान है दो-चार घूँट पी के तबीअ'त बहाल कर ये अब्र ये बहार ये तूफ़ान-ए-रंग-ओ-बू ऐ दोस्त मेरी तिश्ना-लबी का ख़याल कर ये मंज़िल-ए-शबाब है पुर-पेच-ओ-पुर-ख़तर ऐ पैकर-ए-जमाल ज़रा देख-भाल कर हर अहल-ए-दिल की मेरी तरफ़ उठ गई नज़र गुज़रे वो यूँ क़रीब से दामन सँभाल कर ऐ 'शौक़' मैं ने नज़्म-ओ-ग़ज़ल जब कभी कही काग़ज़ पे रख दिया है कलेजा निकाल कर