थी लगन सुनते तिरी शोख़ी-ए-पा की आहट मुझ को चौंकाती रही बाद-ए-सबा की आहट रात-भर क़ाफ़िला यादों का रहा दिल में मुक़ीम कान में आती रही उस कफ़-ए-पा की आहट चाप क़दमों की तिरे काश सुनाई देती पै-ब-पै आती है अब पैक-ए-क़ज़ा की आहट 'क़ादरी' तेज़ करो शम-ए-यक़ीं तेज़ करो रात तारीक है आती है बला की आहट