उस की अना के बुत को बड़ा कर के देखते मिट्टी के आदमी को ख़ुदा कर के देखते मायूसियों में यूँ ही तमन्ना उजाड़ दी उठ्ठे हुए थे हाथ दुआ कर के देखते दुश्मन की चाप सुन के न ख़ामोश बैठते जो फ़र्ज़ तुम पे था वो अदा कर के देखते बे-मेहरी-ए-ज़माना का शिकवा फ़ुज़ूल है निकले थे घर से गर तो सदा कर के देखते उस के बग़ैर ज़िंदगी कितनी फ़ुज़ूल है तस्वीर उस की दिल से जुदा कर के देखते गर्दन झुका के चलने में कितना वक़ार है अपनी अना से ख़ुद को रिहा कर के देखते ताज़ा हवा में उड़ने की ख़्वाहिश थी गर 'सदीद' तुम अपना जिस्म वक़्फ़-ए-फ़ज़ा कर के देखते