ठिकाने यूँ तो हज़ारों तिरे जहान में थे कोई सदा हमें रोकेगी इस गुमान में थे अजीब बस्ती थी चेहरे तो अपने जैसे थे मगर सहीफ़े किसी अजनबी ज़बान में थे बहुत ख़ुशी हुई तरकश के ख़ाली होने पर ज़रा जो ग़ौर किया तीर सब कमान में थे इलाज ढूँढ निकालेंगे अपनी वहशत का जुनूँ-नवाज़ अभी तक इसी गुमान में थे हम एक ऐसी जगह जा के लौट क्यूँ आए जहाँ सुना है कि सब आख़िरी ज़मान में थे