थोड़ा बहुत जो प्यार मिला ग़म-गुसार से वो भी गुमाँ ने छीन लिया क़ल्ब-ए-ज़ार से है कौन सा मक़ाम मोहब्बत न पूछिए नज़दीक आ के हो गया मैं दूर यार से अक़्ल-ओ-ख़िरद के दाम में उलझी हुई हयात कब तक फ़रेब खाएगी अपने ग़ुबार से आया ये शाख़-ए-गुल की तरह कौन झूमता अंगड़ाई ले रहा है चमन भी ख़ुमार से दिल की ज़मीं पे किस ने ये रक्खा क़दम 'शफ़ीक़' आवाज़ किस की आई इस उजड़े दयार से