याद तेरी सियाह रातों में है फ़रोज़ाँ हमारी नज़रों में मैं ने उन से किया था एक सवाल उस का आया जवाब बरसों में जुस्तुजू के दिए रहें रौशन मंज़िलें और भी हैं क़दमों में ज़िंदगानी गर इक सवाल नहीं उम्र कट जाए क्यों जवाबों में अब्र-ए-नैसाँ फिर आज बरसेगा हैं सदफ़ बे-क़रार बहरों में नज़रें गुस्ताख़ हो गईं मेरी कुछ इशारा था उन की आँखों में