थोड़ी हैरान थी घबराई थी शर्माई बहुत हसरत-ए-दीद बुझी बुझ के भी तड़पाई बहुत तुम से आबाद ये आँगन था मिरे पुरखों का सूनी सूनी मुझे लगती है अब अँगनाई बहुत पेड़ जितने थे सभी काट दिए थे हम ने बारिशें रुकते ही इन पेड़ों की याद आई बहुत कल उफ़ुक़ पर न सितारे थे न महताब न रंग थी तख़य्युल के भी बाज़ार में महँगाई बहुत इक सनोबर था वहाँ नीम वहाँ सर्व वहाँ मेरी मिट्टी में ज़रा पहले थी यकजाई बहुत तू अगर मुझ से ख़फ़ा हो के गया तो क्या ग़म तुझ से पहले भी नज़र आए हैं हरजाई बहुत क़ैस मशहूर हुआ इश्क़ में वहदत रख कर वर्ना थे हुस्न के इस दुनिया में सौदाई बहुत